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योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः सूत्र की व्याख्या अर्थ

  "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" पतंजलि योगसूत्र का द्वितीय सूत्र है, जिसका अर्थ है: "योग चित्त की वृत्तियों का निरोध (अवरुद्ध या नियंत्रण) है।" इस सूत्र में "चित्त" का तात्पर्य मन, बुद्धि और अहंकार की सामूहिक चेतना से है। "वृत्ति" का अर्थ है चित्त की विभिन्न गतिविधियाँ, जैसे विचार, कल्पना, स्मृति, स्वप्न आदि। ये वृत्तियाँ चित्त को स्थिर नहीं रहने देतीं, जिससे व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप से विमुख हो जाता है। "निरोध" का अर्थ है रोकना या नियंत्रित करना। पतंजलि के अनुसार, योग का लक्ष्य इन चित्तवृत्तियों को नियंत्रित कर मन को शांत करना है, जिससे साधक आत्मा (पुरुष) के साथ जुड़ सके। जब चित्त शांत हो जाता है, तब व्यक्ति अपने शुद्ध, वास्तविक स्वरूप – द्रष्टा – को अनुभव करता है। इस सूत्र की व्याख्या यह भी दर्शाती है कि योग केवल शारीरिक क्रियाओं (आसन) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मन के गहरे स्तर पर कार्य करता है। ध्यान, प्राणायाम, धारणा आदि योग के अंग इस चित्तवृत्तियों के नियंत्रण की प्रक्रिया में सहायक होते हैं। अतः "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः...