उपनिषदों मेंं वर्णित योग का समीक्षात्मक- अध्ययन

 परिचय

भारतीय दर्शन में उपनिषदों का एक विशेष स्थान है। ये वेदों के अंतिम भाग हैं और "वेदांत" के नाम से भी जाने जाते हैं। उपनिषदों का मूल उद्देश्य आत्मा (आत्मन्) और ब्रह्म (परम सत्य) के ज्ञान की प्राप्ति है। इस ज्ञान तक पहुँचने के लिए उपनिषदों में योग का मार्ग प्रस्तावित किया गया है। यद्यपि उपनिषदों में योग का वर्णन पतंजलि योगसूत्र की भांति सुव्यवस्थित नहीं है, फिर भी उसमें योग के सिद्धांत, अभ्यास और उसका परम उद्देश्य विस्तार से समझाया गया है।

योग का अर्थ उपनिषदों में
"योग" शब्द संस्कृत धातु "युज्" से बना है, जिसका अर्थ होता है – जोड़ना। उपनिषदों में यह आत्मा को ब्रह्म के साथ जोड़ने की एक साधना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यहाँ योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक साधना का नाम है। उपनिषदों में योग को आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है।

योग की अवधारणाएँ उपनिषदों में

  1. ध्यान योग (Meditative Yoga)
    ध्यान को उपनिषदों में योग का सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप माना गया है। श्वेताश्वतर उपनिषद में ध्यान की प्रक्रिया और उसका लक्ष्य विस्तार से बताया गया है। वहाँ कहा गया है कि "ध्यान योग के माध्यम से आत्मा को ब्रह्म में लीन किया जा सकता है।" ध्यान के द्वारा मन को स्थिर करके अंतर्मुखी यात्रा की जाती है।

  2. प्राणायाम और श्वास-नियंत्रण
    छांदोग्य उपनिषद, कठ उपनिषद तथा प्रश्न उपनिषद में प्राण और उसकी गतियों पर गहन चर्चा की गई है। प्रश्‍न उपनिषद में छः प्रश्नकर्ताओं में से एक प्राण की उत्पत्ति, कार्य और महत्व के विषय में पूछता है, जहाँ उत्तर में बताया गया है कि प्राण ही सारे प्राणियों में जीवन का मूल स्रोत है। श्वास को नियंत्रित कर मन पर नियंत्रण पाया जा सकता है – यह योग का मूल तत्व है।

  3. मन की एकाग्रता और इंद्रिय निग्रह
    कठ उपनिषद में मन, इंद्रियों और आत्मा के बीच के संबंध को रथ और रथी के दृष्टांत से समझाया गया है:
    "आत्मा रथी है, शरीर रथ है, बुद्धि सारथी है, मन लगाम है और इंद्रियाँ घोड़े हैं।"
    योग में इंद्रियों को संयमित करना अनिवार्य माना गया है ताकि मन स्थिर हो सके और आत्मा अपने गंतव्य की ओर अग्रसर हो सके।

  4. योग द्वारा मोक्ष की प्राप्ति
    उपनिषदों का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है – जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति। योग को इस उद्देश्य की प्राप्ति का साधन माना गया है। मुण्डक उपनिषद में कहा गया है:
    "जब योगी अपने मन और इंद्रियों को शांत कर आत्मा में स्थित हो जाता है, तब वह परम ब्रह्म को प्राप्त करता है।"

प्रमुख उपनिषदों में योग के उल्लेख

  1. श्वेताश्वतर उपनिषद
    इस उपनिषद में सर्वाधिक विस्तृत रूप से योग का उल्लेख मिलता है। यहाँ योग की अवस्था, साधना की विधियाँ, गुरु का महत्व, शरीर की स्थिति, ध्यान की विधि, और आत्मा की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। इसमें बताया गया है कि एक शांत और पवित्र स्थान में बैठकर शरीर, श्वास और मन को स्थिर करना योग का प्रारंभ है।

"युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु। युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा॥"

  1. कठ उपनिषद
    यह उपनिषद यम-नचिकेता संवाद के रूप में है, जहाँ आत्मा और ब्रह्म के रहस्य को योग के माध्यम से जानने की बात कही गई है। यहाँ कहा गया है कि आत्मा को जानने के लिए इंद्रियों को नियंत्रित कर ध्यानस्थ होना आवश्यक है।

"नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन। यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्॥"

  1. प्रश्न उपनिषद
    इसमें छह ऋषियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में प्राण, इंद्रियाँ, मन और ब्रह्म के रहस्य को उजागर किया गया है। इसमें प्राणायाम, ध्यान और योग की विधियों का उल्लेख है।

"प्राणो हि एष यः सर्वभूतैः प्रतिष्ठितः।"

  1. मुण्डक और माण्डूक्य उपनिषद
    इन उपनिषदों में ध्यान और ओंकार (ॐ) के माध्यम से ब्रह्म की प्राप्ति का मार्ग बताया गया है। विशेषकर माण्डूक्य उपनिषद में ओंकार को योग का केंद्र माना गया है।

"ओं इत्येतदक्षरं इदं सर्वं तस्योपव्याख्यानं भूतं भवद्भविष्यदिति सर्वं ओंकार एव।"


उपनिषदों में योग के उद्देश्य

उपनिषदों के अनुसार योग का उद्देश्य केवल शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और ब्रह्मसाक्षात्कार है। यह आत्मा को उसकी वास्तविक पहचान से परिचित कराता है, जिससे व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकता है।

मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • आत्मा और ब्रह्म का ऐक्य अनुभव करना

  • इंद्रियों और मन पर नियंत्रण

  • संसार के मोह और भ्रम से मुक्ति

  • मोक्ष की प्राप्ति

गुरु का महत्व

उपनिषदों में योग की साधना के लिए गुरु को अनिवार्य बताया गया है। गुरु ही वह मार्गदर्शक होता है जो साधक को अज्ञान के अंधकार से निकालकर आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
छांदोग्य उपनिषद और कठ उपनिषद में गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष उल्लेख है।

उपनिषदों की योग विषयक शिक्षाएँ – आज के परिप्रेक्ष्य में
आज जब योग विश्वव्यापी बन चुका है, तो उपनिषदों की योग विषयक गूढ़ शिक्षाएँ और भी प्रासंगिक हो गई हैं। वर्तमान में योग को अक्सर केवल शारीरिक व्यायाम समझा जाता है, जबकि उपनिषद हमें उसकी आध्यात्मिक गहराई से परिचित कराते हैं। आत्मानुभूति, मौन, ध्यान और अंतर्मन की यात्रा – ये सभी उपनिषदों में वर्णित योग के मूल तत्व हैं।

निष्कर्ष
उपनिषदों में योग केवल एक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक आध्यात्मिक पद्धति है। यह आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने की प्रक्रिया है। योग के माध्यम से व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त करता है और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। उपनिषदों में वर्णित योग न केवल भारतीय दर्शन की अमूल्य निधि है, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए शांति, आनंद और मुक्ति का मार्ग है।

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