हठयोग प्रदीपिका के अनुसार मिताहार

 परिचय

हठयोग भारतीय योगशास्त्र की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसका मुख्य उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करके आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करना है। हठयोग की साधना में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, मुद्राएं, ध्यान आदि के साथ-साथ आहार का विशेष महत्व है। इसमें आहार को न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास का भी मूल आधार माना गया है। इस संदर्भ में "मिताहार" (संयमित और संतुलित भोजन) को एक प्रमुख सिद्धांत के रूप में अपनाया गया है।

मिताहार की परिभाषा
"मित" का अर्थ है – सीमित या संयमित, और "आहार" का अर्थ है – भोजन। अतः मिताहार का तात्पर्य है – न बहुत अधिक और न बहुत कम, बल्कि आवश्यक मात्रा में, शुद्ध, सात्त्विक और समय पर लिया गया भोजन।

हठयोगप्रदीपिका (श्लोक 1.58) में कहा गया है:

"मिताहारं सुशीलत्वं यमधर्मोऽनुपालनम्।
एते योगस्य साधकस्य प्रथमाङ्गानि वर्जयेत्॥"

(मिताहार, सुसंयम, यम-नियम का पालन – ये योग की प्रारंभिक आवश्यकताएँ हैं।)

मिताहार के गुण
हठयोग के अनुसार मिताहार में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए:

  1. सात्त्विकता: भोजन शुद्ध, ताजा, हल्का, पौष्टिक और जीवनदायिनी होना चाहिए। मांस, मदिरा, तीखा, बहुत गरम, बासी या तामसिक भोजन वर्जित है।

  2. मात्रा में संयम: पेट को तीन भागों में बाँटना चाहिए – एक भाग भोजन, एक भाग जल और एक भाग खाली रहना चाहिए। इससे पाचन ठीक रहता है और शरीर ऊर्जा से भरपूर रहता है।

  3. समय और विधि: भोजन शांत मन से, नियमित समय पर और ध्यानपूर्वक करना चाहिए। जल्दी-जल्दी या चलते-फिरते भोजन करने से पाचन बिगड़ता है और योगसाधना में बाधा आती है।

  4. नियमितता: एक ही समय पर, एक ही प्रकार का भोजन लेने की आदत स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी गई है। बार-बार खाने से मन अस्थिर होता है और शरीर सुस्त।

हठयोग में मिताहार का महत्व

  1. शारीरिक स्वास्थ्य: मिताहार से शरीर हल्का, शुद्ध और स्वस्थ रहता है। इससे आसनों और प्राणायामों का अभ्यास सहज होता है।

  2. मन की स्थिरता: हल्का और सात्त्विक भोजन मन को शांत करता है और ध्यान में स्थिरता लाता है।

  3. प्राणशक्ति की वृद्धि: मिताहार से शरीर में प्राण का संचार सहज होता है, जिससे ऊर्जा का स्तर बढ़ता है और योग साधना में प्रगति होती है।

  4. तप और अनुशासन का अभ्यास: संयमित आहार से साधक में अनुशासन और आत्मनियंत्रण की भावना उत्पन्न होती है, जो योग का मूल है।

निष्कर्ष
हठयोग के अनुसार मिताहार न केवल एक शारीरिक आवश्यकता है, बल्कि योग साधना की सफलता की कुंजी है। यह शरीर, मन और आत्मा – तीनों को संतुलित रखने का माध्यम है। संयमित आहार से साधक न केवल स्वस्थ रहता है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी उन्नति करता है। इसीलिए कहा गया है – "युक्ताहारविहारस्य योगो भवति दुःखहा।"

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