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प्राणायाम किसे कहते हैं।

  प्राणायाम किसे कहते हैं? प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो श्वास-प्रश्वास की नियंत्रित क्रिया के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने का साधन है। "प्राणायाम" शब्द दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है – "प्राण" और "आयाम"। "प्राण" का अर्थ है जीवन शक्ति या जीवनी ऊर्जा, और "आयाम" का अर्थ है विस्तार या नियंत्रण। अतः प्राणायाम का तात्पर्य है – जीवन ऊर्जा का नियंत्रण एवं उसका विस्तार। प्राणायाम का महत्व योगशास्त्र में प्राण को शरीर की सूक्ष्म शक्ति माना गया है, जो न केवल श्वास के रूप में कार्य करती है, बल्कि पूरे शरीर में ऊर्जा के संचार को भी नियंत्रित करती है। जब यह ऊर्जा असंतुलित हो जाती है, तो व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है। प्राणायाम के अभ्यास से इस ऊर्जा को संतुलित कर स्वास्थ्य, शांति और चेतना का विकास किया जा सकता है। प्राणायाम के प्रकार प्राणायाम के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें प्रमुख हैं: अनुलोम-विलोम प्राणायाम – इसमें एक नासाछिद्र से श्वास लेना और दूसरे से छोड़ना होता है। यह नाड़ीशुद्धि का कार...

शीलती प्राणायाम

✅ शीतली प्राणायाम की विधि (विधान) सूत्र (Step-wise method): जिह्वा को नलिका रूप में बनाकर श्वास का आह्वान, फिर नासिका से रेचन। विधि: आरामदायक योगासन (जैसे पद्मासन, सुखासन) में बैठ जाएं। आँखें बंद करें और शरीर को शांत रखें। जीभ को बाहर निकालें और उसे नलिका (ट्यूब) की तरह गोल करें (जैसे 'सीटी' बजाने की मुद्रा)। इस नलिका से धीरे-धीरे, लंबी और गहरी सांस अंदर लें — ठंडी हवा जीभ को छूती हुई अंदर जाती है। फिर जीभ को अंदर कर लें और नाक के दोनों छिद्रों से धीरे-धीरे सांस बाहर छोड़ें। यह एक चक्र हुआ। ऐसे 5 से 10 बार करें (शुरुआत में धीरे-धीरे बढ़ाएं)। 🌿 शीतली प्राणायाम के लाभ (Benefits) 📌 सूत्र: “शीतली पित्तनाशाय, मनःशांतिप्रदायिनी।” ("शीतली प्राणायाम पित्त दोष का नाश करती है और मन को शांत करती है।") मुख्य लाभ: 🔥 पित्त दोष का नियंत्रण: शरीर की गर्मी को कम करता है। 🧘‍♀️ मानसिक शांति: तनाव, क्रोध और चिड़चिड़ेपन को कम करता है। ❤️ रक्तचाप नियंत्रण: उच्च रक्तचाप में सहायक। 😌 शरीर को ठंडक: गर्मियों में विशेष लाभदायक। 😷 पाचन क्रिया ...

योग के साधक तथा बाधक तत्त्व

  1.    हठयोग प्रदीपिका के अनुसार योग के साधक तथा बाधक तत्त्व हठयोग प्रदीपिका , स्वामी स्वात्माराम द्वारा रचित एक प्रमुख ग्रंथ है जो हठयोग की साधना , विधियों और सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन करता है। इस ग्रंथ में योग की सिद्धि प्राप्त करने वाले तत्त्वों को साधक तत्त्व कहा गया है , जबकि योग की साधना में विघ्न डालने वाले तत्त्वों को बाधक तत्त्व कहा गया है। यह ग्रंथ स्पष्ट करता है कि योग के अभ्यास में सफलता के लिए उचित आचरण , मनोभाव और जीवनशैली आवश्यक है। साधक तत्त्व (योग की साधना में सहायक तत्व) हठयोग प्रदीपिका में छः प्रमुख साधक तत्त्वों का वर्णन किया गया है , जो इस प्रकार हैं: 1.     उत्साह (उद्यम) – योग साधना के लिए निरंतर प्रयास , जोश और प्रबल इच्छाशक्ति आवश्यक है। उत्साही साधक कभी निराश नहीं होता और अभ्यास में लगे रहकर सफलता प्राप्त करता है। 2.    साहस (धैर्य) – साधक को मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से न डरते हुए साहसपूर्वक आगे बढ़ना चाहिए। यह मानसिक शक्ति का प्रतीक है। 3.    धैर्य (स्थैर्य) – परिणाम की शीघ्र अपेक्षा न...

हठयोग प्रदीपिका के अनुसार मिताहार

  परिचय हठयोग भारतीय योगशास्त्र की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसका मुख्य उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करके आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करना है। हठयोग की साधना में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, मुद्राएं, ध्यान आदि के साथ-साथ आहार का विशेष महत्व है। इसमें आहार को न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास का भी मूल आधार माना गया है। इस संदर्भ में "मिताहार" (संयमित और संतुलित भोजन) को एक प्रमुख सिद्धांत के रूप में अपनाया गया है। मिताहार की परिभाषा "मित" का अर्थ है – सीमित या संयमित, और "आहार" का अर्थ है – भोजन। अतः मिताहार का तात्पर्य है – न बहुत अधिक और न बहुत कम, बल्कि आवश्यक मात्रा में, शुद्ध, सात्त्विक और समय पर लिया गया भोजन। हठयोगप्रदीपिका (श्लोक 1.58) में कहा गया है: "मिताहारं सुशीलत्वं यमधर्मोऽनुपालनम्। एते योगस्य साधकस्य प्रथमाङ्गानि वर्जयेत्॥" (मिताहार, सुसंयम, यम-नियम का पालन – ये योग की प्रारंभिक आवश्यकताएँ हैं।) मिताहार के गुण हठयोग के अनुसार मिताहार में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए: सात्त्विकता : भोजन शुद्ध, त...

उपनिषदों मेंं वर्णित योग का समीक्षात्मक- अध्ययन

  परिचय भारतीय दर्शन में उपनिषदों का एक विशेष स्थान है। ये वेदों के अंतिम भाग हैं और "वेदांत" के नाम से भी जाने जाते हैं। उपनिषदों का मूल उद्देश्य आत्मा (आत्मन्) और ब्रह्म (परम सत्य) के ज्ञान की प्राप्ति है। इस ज्ञान तक पहुँचने के लिए उपनिषदों में योग का मार्ग प्रस्तावित किया गया है। यद्यपि उपनिषदों में योग का वर्णन पतंजलि योगसूत्र की भांति सुव्यवस्थित नहीं है, फिर भी उसमें योग के सिद्धांत, अभ्यास और उसका परम उद्देश्य विस्तार से समझाया गया है। योग का अर्थ उपनिषदों में "योग" शब्द संस्कृत धातु "युज्" से बना है, जिसका अर्थ होता है – जोड़ना। उपनिषदों में यह आत्मा को ब्रह्म के साथ जोड़ने की एक साधना के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यहाँ योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक साधना का नाम है। उपनिषदों में योग को आत्मसाक्षात्कार और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना गया है। योग की अवधारणाएँ उपनिषदों में ध्यान योग (Meditative Yoga) ध्यान को उपनिषदों में योग का सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप माना गया है। श्वेताश्वतर उपनिषद में ध्यान की प्रक्र...

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः सूत्र की व्याख्या अर्थ

  "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः" पतंजलि योगसूत्र का द्वितीय सूत्र है, जिसका अर्थ है: "योग चित्त की वृत्तियों का निरोध (अवरुद्ध या नियंत्रण) है।" इस सूत्र में "चित्त" का तात्पर्य मन, बुद्धि और अहंकार की सामूहिक चेतना से है। "वृत्ति" का अर्थ है चित्त की विभिन्न गतिविधियाँ, जैसे विचार, कल्पना, स्मृति, स्वप्न आदि। ये वृत्तियाँ चित्त को स्थिर नहीं रहने देतीं, जिससे व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप से विमुख हो जाता है। "निरोध" का अर्थ है रोकना या नियंत्रित करना। पतंजलि के अनुसार, योग का लक्ष्य इन चित्तवृत्तियों को नियंत्रित कर मन को शांत करना है, जिससे साधक आत्मा (पुरुष) के साथ जुड़ सके। जब चित्त शांत हो जाता है, तब व्यक्ति अपने शुद्ध, वास्तविक स्वरूप – द्रष्टा – को अनुभव करता है। इस सूत्र की व्याख्या यह भी दर्शाती है कि योग केवल शारीरिक क्रियाओं (आसन) तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मन के गहरे स्तर पर कार्य करता है। ध्यान, प्राणायाम, धारणा आदि योग के अंग इस चित्तवृत्तियों के नियंत्रण की प्रक्रिया में सहायक होते हैं। अतः "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः...

ठंड लग जाने पर शरीर को जल्दी से गर्म कैसे करें।

  ठंड लग जाने पर शरीर को जल्दी से गर्म करना और ठंड से जुड़ी समस्याओं को कम करना महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित उपाय अपनाकर आप राहत पा सकते हैं: 1. गर्मी प्रदान करें: गर्म कपड़े पहनें: स्वेटर , जैकेट , मोजे , टोपी और दस्ताने तुरंत पहन लें। कंबल में लपेटें: अपने शरीर को कंबल या ऊनी कपड़ों से ढकें। हीटर या अंगीठी का उपयोग करें: कमरे को गर्म करने के लिए हीटर का प्रयोग करें। गर्म पानी की बोतल: इसे कपड़े में लपेटकर शरीर के पास रखें (जैसे पेट , पैर , या पीठ पर)। 2. गर्म पेय और भोजन लें: गुनगुना पानी पिएं: शरीर को अंदर से गर्म रखने के लिए। सूप: अदरक , लहसुन और काली मिर्च के साथ बना गर्म सूप लें। चाय: तुलसी , अदरक , और दालचीनी वाली चाय ठंड से राहत देती है। हल्दी वाला दूध: यह शरीर को गर्म रखने और इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करता है। 3. शरीर की मालिश करें: सरसों या तिल के तेल से मालिश करें: इससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और शरीर में गर्मी आती है। मालिश के बाद गर्म कपड़े पहनें। 4. व्यायाम करें: ...